प्रत्येक मानव जीवन यात्रा कर रहा हे. इसमे कई पडाव आते हे,वहॉ वह ठहर जाता हे,ओर जितना अधिक रुकता हे उतना समय शांति की जगह अशांति का अनुभव करता हे,ओर इस अशांति का मुख्य कारण वह खोज नही पाता हे, इसलिये वो दुसरो पर दोष लगाता हे,ओर कहता हे कि "इसकी वजह से मुझे दुःख प्राप्त हुआ " वास्तव मे दुःख{विपदा} का सही उपाय न जान सकने से निवृति का सही उपाय न जान नें से ही अशांति का अनुभव करता हे. इस प्रकार मानव अपनी जीवन यात्रा करता हे.कभी वह शिशुरुप में बनकर असहाय होजाता हे.कभी बालक बनकर रूदन करता हे,कभी खेलता हे,कभी हॅसता हे,कभी किशोर अवस्था मे शांति के उपाय सोचता हे तो कभी युवावस्था मे पुरुषार्थ के द्वारा कर्म करता हे,कभी मानव पूर्ण बुध्दिमता को प्राप्त अनेक ग्रन्थों तथा शास्त्रो मे शांति का उपाय ढुंढता हे, यही शोध करते करते वह जीवन यात्रा मे वृध्द हो जाता हे ओर परीश्रम करने की क्षमता खो देता हे, निराश हो जाता हे तब भी जीवनयात्रा उसकी चलती रहती हे.अंत मे जब वह निसहाय होकर बैठ जाता है उसकी शक्ति क्षीण होजाती हे तब अंत मे "जीवनयात्रा" उसकी समाप्त हो जाती हे.ओर वह अंत समय में जिसका ध्यान करता हे पुनः उसे ही प्राप्त करता हे.ओर अपनी "जीवनयात्रा" का फल उसे मिलता है.लेखक- आचार्यश्री विजयकुमारजी महाराजश्री{कडी-अहमदाबाद्}

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ReplyDeleteDANWAT KRIPANATH.
ReplyDeleteApshri Ke Vachanamrut Pakar Atyanat Anand Hua,
Apshri Ke Yugal Charnarvind Me Koti Koti Vandan.
from-vipul desai