Thursday, May 7, 2009

मेरे प्रिय अग्निकुमार श्रीविठ्ठलनाथजी

पुरुषोत्तमस्वरुप्,सर्वसमर्थ्,सर्वगुणसंपन्न्,राजस्-तामस-सात्त्विक निर्गुण जीवन कूं शरणस्थ कर,भगवद स्वानुभव करायवे वारे,पुष्टि भक्तिमार्ग को विस्तार करिवें वारे । अनेक ग्रंथन् कूं प्रकट करवे वारे,जीवन कूं ज्ञान देवे वारे,क्षमाशील,भगवदसेवापरायणता प्रकट करिवे वारे।गीत संगीत के सागर,जा कला में जीव की निपुणता होय,वाको भगवद सेवा में विनियोग करायवे वारे।विप्रयोग को अनुभव करायवे वारे।मूक जीवन कूं अलौकिक वाणी प्रदान करिवे वारे,लोभी कूं परम उदार बनायवे वारे,तामसी कूं सात्त्विक बनायवे वारे, परम उदार चतुर चिंतामणि,ऐसे मेरे प्रिय अग्निकुमार श्रीविठ्ठलनाथजी है। श्रीवल्लभ के दिव्य अलौकिक १०८ नाम {श्रीसर्वोत्तमस्तोत्र} रुप {श्रीवल्लभाष्टम्} ओए गुण {श्रीस्फुरतकृष्णप्रेमामृत} कुं इन रसमय,प्रेममय,भावमय्,लीलात्मक ग्रंथन् में प्रगट करवे वारे.ऐसे मेरे प्रिय अग्निकुमार श्रीविठ्ठलनाथजी है।
लेखक- आचार्यश्री विजयकुमारजी महाराजश्री{कडी-अहमदाबाद्}

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