Thursday, May 7, 2009

मेरे प्रिय जय जय श्री गोकुलेश{श्रीवल्लभ}

सेवा-धर्म उपदेशक,धर्म्-आचरण करके सीख देवे वारे,अनन्यता भाव प्रकट करवे वारे।भगवदलीलारसानुभव करायवे वारे,अनेक गंथन् कूं प्रकट करवे वारे।द्रढाश्रय सिध्द करायवे वारे,भगवद-संत्संग मे तत्पर रहवे वारे,अनेक शंकान को समाधान करिवे वारे,अनेक जीवन कूं शरण में लेके परम अनन्याश्रित करिवे वारे।आसूरी जीवन कूं भयभीत करवे वारे,धर्मरक्षक्,मालातिलक की रक्षा करवे वारे। ऐसे मेरे प्रिय जय जय श्री गोकुलेश{श्रीवल्लभ} है।
केसी भी धर्म विपरीत परीस्थिती आए जाय तो भी अपने धर्म कुं नही छोडनो चहिये,अपने ही धर्म चिन्हन् कुं सदा धारण करनो,द्रढ निष्टावान,कोई के डरायवे,धमकायवे अथवा मार डारवे के भयसुं भयभीत नही होनो,डरनो नही,अपने आत्मबल कुं द्रढ करी के रहने पूर्ण अनन्य आश्रित होय रहनो,एसी प्रबल दृढता निष्ठा प्रकट करीके अपने धर्म पे रही के माला-तिलक न छोडवे वारे एसे प्रतापी एकनिष्ट मेरे प्रिय श्रीगोकुलेश है।चिद्रुप सन्यासी कुं निरूत्तर करेवे वारे,मायावादी न कुं परास्त करवे वारे, जहांगिर कुं चमत्कार बतायवे वारे,ऐसे धर्म रक्षक मेरे श्री गोकुलनाथजी है,श्रीवल्लभ्,श्रीविठ्ठ्ल के निज सेवक कन की जीवन गाथा कुं प्रकट करवे वारे,सेवा-सत्संग स्नेही,श्री विठ्ठ्लनाथजी श्री गुंसाईजी के लाडिले,अपने श्री कंठ में सुं माला उतारी श्रीगोकुलनाथजी कुं धरायवेवारे श्रीगुंसाई के प्रियपुत्र मेरे श्रीगोकुलनाथजी है।

लेखक- आचार्यश्री विजयकुमारजी महाराजश्री{कडी-अहमदाबाद्}

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