Thursday, May 7, 2009

मेरे प्रिय श्री गोवर्धनवासी सांवरे

गिरिकंदरा में सुं प्रकट होय,भक्तन् कूं आनंद देत गिरि पर अनेक लीलाएं करत गोप-गोपी गायन के संग हिलमिल खेलत,बाललीला-किशोरलीला करत,भक्तन् दीन-हीन के मनोरथ पूरण करत फल देत श्री वल्लभ के परम लाडिले-अधर सुधा रसदान देत ।अनेक चिह्नन् कूं धारण करिवे वारे। देवदमन-नागदमन-इन्द्रदमन् तीन स्वरुप प्रकट करिवे वारे । मूल एक ही स्वरूप सूं गिरिकंदरा में ठाडे । वाम श्रीहस्त ऊंचो करि प्रियजन कूं बुलायवे वारे,दक्षिण श्रीहस्त कटि पे धरि मानों कहि रहे हैं " मेरे पास जो आओगे,तो मैं कबहुं नहिं छोडूंगो " ऐसे मधुर वचन कहिवे वारे । सारस्वत कल्प की प्रकट करिवे वारे । कमलनयन,श्री प्रियाजी तथा श्री वल्लभ के वश होयके रहिवे वारें । ऐसे मेरे परमप्रिय श्री गोवर्धनवासी सांवरे श्रीजी हैं । जिनको मैं सदा ध्यान करूं हूं ।
" तुम बिन रह्यो न जाय हो "
दूध-दही माखन-मिश्री जिनकूं प्रिय हैं । श्री वल्लभ की आज्ञा सूं पुष्टिजीवन के मनोरथ सिध्ध करवे वारे । दान-मान-रास खेल की लीलान कूं प्रकट कर सबन कूं सूख देवे वारे । ऐसे मरे लाडिले ललितमनोहर, मनमोहन,चितचोर्, मेरे प्रिय श्री गोवर्धनवासी सांवरे श्रीजी हैं । हे सांवरे तुम बिन रह्यो न जाय ।
गौधूलि वेला में गैयान् कूं चराय के,वन में सूं व्रज में आवत होंय्,गैयान के मध्य में गौरज सूं अंकित ग्वालबालन सहित ब्रजरेणु अंकित चिन्ह के दर्शन करायवें वारें । अधर पे मधुर वेणु बजाय के मन कूं मोहित करिवे वारे । कारी-कामरिया-लकुटिया,मस्तक पे मोरपीछ शोभित हैं । कोमल खुले चरणारविंद सूं गौअन् के मध्य में पधारवे वारे ।भक्तन की आर्ति कूं शांत करिवे वारे । नेत्र्-कटाक्षन् सूं बूलायवे वारे,सुंदर मुखारविंद, सुंदर, सुंदर, अति सुंदर श्री अंग में समस्त चिह्नन् कूं धारण करिवे वारे, मेरे प्रिय श्री गोवर्धनवासी सांवरे.
" तुम बिन रह्यो न जाय हो "

लेखक- आचार्यश्री विजयकुमारजी महाराजश्री{कडी-अहमदाबाद्}

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