Thursday, June 18, 2009

" सत्संग माहात्म्य "

जीवन में अलौकिक परिवर्तन लाने हेतु, एक ही मुख्य उपाय है जिससे विचार,भावना,स्वभाव,दैनिक जीवन में बद्लाव आ सकता है। ह्रदय में कोमलता,मन की स्थिरता,अलौकिक भगवदभाव,धर्मशास्त्रों का ज्ञान,महान भगवदीयों के जीवन से सीख,स्वगृह बिराजते अपनें निजी स्वरूप का स्वरूपदर्शन,सेवाप्रणालिका की जानकारी,कीर्तन आदि तथा सेवा-आभरण आदि का एवं भगवदभाव में वृध्दि यह सब ज्ञान केवल सत्संग के द्वारा ही प्राप्त कीया जा सकता है। आज के वर्तमान समय में सत्संग की अति आवश्यकता है। जिससे दु:संग से बचा जा सकता है, जिन-जिन सज्जनों नें सत्संग का नियम बनाया है, उनके मन एवं जीवन अलौकिक परिवर्तन आया है। क्रोध्,दुराग्रह्,असत्य्,निंदा,लोभ्,हिंसा,पा़खण्ड आदि सब दुर्गुण छूट्कर सत्य का दर्शन होने लगता है। क्योंकि सत्संग ही एक ऐसा उपाय है। जिससे हम अपने जीवन को अलौकिक भावों से भर सकते है। प्रभुसान्निध्य ,सानुभाव ,स्नेह ,भगवदभाव, भावाभिवृध्दि यह सभी सत्संग द्वारा ही संभव है।
इसलिये सदा सर्वदा कोई अन्य आग्रह न रखते हुए केवल सत्संग का ही आग्रह रखनें से अलौकिक अभी शुभगुणोंकी वृध्दि होना आरंभ हो जाता है।हमारे महान महनुभावों नें सत्संग को आत्मसात करके अनुभव किया है। ओर कहा है कि सत्संग नियन अवश्य बनाना चाहिए। इससे ही सदगुणों की खान प्राप्त होगी। मलिनता दूर होगी,कोमलता प्राप्त होगी,सब काम करनें से पूर्व भगवदकार्य पहले करनें की भावना की जागृति सदा रहेगीं, थोडी देर के भी एकाग्रता से सत्संग करने से जीवन में बदलाव आ सकता है। जीने के लिये जल की आवश्यकता रहती है। उसी प्रकार आत्मा को पोषण देने हेतु सत्संग की आवश्यता रहती है। उसी प्रकार आत्मा को पोषण देने हेतु सत्संग की आवश्यता है।
इसलेख को पढकर जो सत्संग का आग्रह रखकर सत्संग नियम से करेंगे।उस पर श्रीवल्लभ की कृपादृष्टि सदा रहेगी,ओर वह जीव प्रभु-प्रिय हो जायगा, इस में कोई शंका नही है।

लेखक- आचार्यश्री विजयकुमारजी महाराजश्री{कडी-अहमदाबाद्}