भक्ति की दाता,रसरुपिणि,श्याम-प्रिय्,अष्ट सिध्दि-नव निधि कूं धारण करिवे वारी,सदा श्याम संग संयोग रस को अनुभव करिवे-करायवे वारि । दर्शन पयपान् सूं स्मरण सेवा ध्यान करवे वारे के वश होय्,श्याम सूं मिलायवे वारी, लीला सामग्री सिध्द करि कें निजजन के मनोरथ कीं पूर्ण करायवे वारी । भाग्य तथा सौभाग्य कूं देवे वारी। तत् सुख भाव विचारी कें सदा प्रभु की सेवा मे तत्पर रहेवे वारी,महाप्रभु श्रीवल्लभ की स्तुति सूं प्रसन्न होयवें वारी।पुष्टिलीला के जीवन् कूं प्रभु सूं मिलायवे वारी। ऐसी मेरी परम प्रिय श्यामप्रिया श्रीयमुनाजी है ।लेखक- आचार्यश्री विजयकुमारजी महाराजश्री{कडी-अहमदाबाद्}

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